Ticker

6/recent/ticker-posts

संत कवि पवन दीवान जी का जीवन परिचय/जीवनी . Biography of saint poet Pawan Diwan.

संत कवि पवन दीवान

छत्तीसगढ़ के प्रयाग कहे जाने वाले राजिम (महानदी पैरी और सोदूर नदी का जीवंत संगम) के पास स्थिति किरवई गांव में 01  जनवरी 1945 को प्रतिष्ठित ब्राम्हण परिवार में जन्मे पवन दीवान की प्रारंभिक शिक्षा फिंगेश्वर में हुई। जहां दीवान जी ने प्राथमिक शिक्षा ली I  हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी में एम.ए. करने वाले पवन दीवान जब संस्कृत कालेज रायपुर में पढ़ते थे तब आचार्य रजनीश भी वहां व्याख्याता थे। छात्र जीवन से ही साहित्य सृजन करने वाले दीवानजी छत्तीसगढ़ी और हिन्दी में कविता भी करने लगे थे, वैसे उन्होंने कुछ कविताएं अंग्रेजी में भी लिखी थी। कविता करते करते वे भागवत प्रवचन में लग गये और छत्तीसगढ़ की हालत, दलितों की पीड़ा और अन्यत्र कारणों से व्यथित होकर उन्होंने स्वर्गधाम मैनपुरी ऋषिकेश के स्वामी भजनानंद जी महाराज से दीक्षा लेकर वैराग्य के मार्ग पर बढ़ चले। उनका नाम भी दीक्षा के बाद स्वामी अमृतानंद हो गया हालांकि वे पवन दीवान के नाम से पहचाने जाते थे। 

आपातकाल के समय उन्होंने 'पृथक छत्तीसगढ़ पार्टी से भी रायपुर से चुनाव लड़ा उन्हें सफलता से तो नहीं मिली पर 'पृथक छत्तीसगढ़ राज्य' के लिए अलख जगाने का बीज उन्होंने रोपित ही दिया। स्व. खूबचंद बघेल से लेकर स्व. चंदूलाल चंद्राकर के सतत् संपर्क में रहकर उन्होंने 'पृथक छत्तीसगढ़ के लिए जमकर संघर्ष भी किया। उनके बारे में एक नारा बहुत उछला था 'पवन नहीं वह आंधी है, छत्तीसगढ़ का गांधी है '.

वर्ष 1975 में आपात काल के बाद सन 1977 में जनता पार्टी से राजिम विधानसभा सीट से चुनाव लड़े। एक युवा संत कवि के सामने तब कांग्रेस के दिग्गज नेता श्यामाचरण शुक्ल कांग्रेस पार्टी से मैदान में थे, श्यामाचरण शुक्ल को हराकर सबको चौंका दिया था। तब उस दौर में एक नारा गूँजा था- पवन नहीं ये आँधी है, छत्तीसगढ़ का गाँधी है। श्यामाचरण शुक्ल जैसे नेता को हराने का इनाम पवन दीवान को मिला और अविभाजित मध्य प्रदेश में जनता पार्टी की सरकार में जेल मंत्री रहे। इसके बाद वे कांग्रेस के साथ आ गए और फिर पृथक राज्य छत्तीसगढ़ बनने तक कांग्रेस में रहे.पूर्व सरकार में गौ सेवा आयोग के अध्यक्ष रहे . 

संवादात्मक कविता 'राख'

राखत भर ले राख …

तहाँ ले आखिरी में राख।।

राखबे ते राख…।।

अतेक राखे के कोसिस करिन…।।

नि राखे सकिन……

तेके दिन ले…।

राखबे ते राख…।।

नइ राखस ते झन राख…।

आखिर में होना च हे राख…।

तहूँ होबे राख महूँ होहू राख…।

सब हो ही राख…

सुरू से आखिरी तक…।।

सब हे राख…।।

ऐखरे सेती शंकर भगवान……

चुपर ले हे राख……।

उनकी प्रकाशित पुस्तकों में कविता संग्रह 'मेरा हर स्वर इसका पूजन' और 'अम्बर का आशीष' उल्लेखनीय हैं। 'अंतरिक्ष' ,'बिम्ब' और 'महानदी' नामक साहित्यिक पत्रिकाओं का सम्पादन किया।समय गुजरते-गुजरते एक दिन ऐसा भी आया, जब अपनी खिलखिलाहट से समूचे छत्तीसगढ़ को हंसा देने वाले पवन दीवान का  2 मार्च, 2014 को दिल्ली में इलाज के दौरान उनका निधन हो गया।

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ