छत्तीसगढ़ अंचल में विभिन्न अवसरों में किये जाने वाले लोक नृत्य एवं जनजाति नृत्य के बारे में आइये जानते हैं:-
01) एबलतोर - मुड़ीया
- मड़ई महोत्सव में खुले मैदान में किये जाने वाला नृत्य।
02) ककसार - मुड़ीया
- लिंगोपेन देवता के लिए वर्ष में एक बार स्त्री-पुरुष दोनों के द्वारा किया जाने वाला नृत्य।
03) डंडारी - मुड़ीया
- होली के अवसर पर सुख-समृद्धि के लिए किया जाने वाला नृत्य।
04 ) हुल्कीपाटा - मुड़ीया
06 ) बैगा - परघौनी
- विवाह बारात अगुवा के लिए वर पक्ष के द्वारा मिट्टी का देवता बनाकर यह नृत्य किया जाता है।
07 ) उरांव - दोरला /पैठुल
- किसी भी अवसर पर स्त्री-पुरुष दोनों के द्वारा किया जाने वाला नृत्य इसे पैठुल नृत्य के नाम से जानते हैं। सरना देवी को प्रसन्न करने चैत्र पूर्णिमा में किया जाता है।
08) पंथी नृत्य
- गुरु घासीदास बाबा के प्रतीक स्वरुप, श्वेत रंग का जैतखम्भ स्थापित कर उसके चारों ओर घूम-घूमकर नृत्य किया जाता है। इसे स्त्री-पुरुष दोनों करते हैं ।
09) मांदरी - मुड़ीया
11) बैगा - अटारी
- पूर्वी बघेलखण्ड में एक पुरुष के कंधे पर दो लोग चढ़कर नृत्य करते है.
12) राउत नाचा
- यह एक प्रकार का शौर्य प्रदर्शक नृत्य है। इसे गहिरा नाच के नाम से भी जाना जाता है। यह कार्तिक प्रबोधनी एकादशी से प्रारम्भ होता है तथा एक माह तक चलता है। इस दौरान पशुओं में सुहाई बांधी जाती है। (मोर पंख), राउत नाचा पुरुषों के द्वारा किया जाता है। 'गड़वा बाजा' की धुन पर प्रत्येक वर्ष बिलासपुर में राउत नाच महोत्सव का आयोजन किया जाता है।
13) सुआ नृत्य
14) करमा नृत्य
- विजयादशमी से अगली वर्षा तक, कर्मसेनी माता/कर्म देवता के लिए 8 पुरुष, 8 महिलाओं द्वारा किया जाता है। कर्म को प्रधानता दी जाती है।
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