सिरागे (Sirage) - छत्तीसगढ़ी कविता (Chhattisgarhi Kavita)
जाँगर के मान हा सिरागे।
मनखे के सान हा सिरागे।
बाँटा होगे लइका-बुध मा,
घर के सियान हा सिरागे ?
मिथिया ले कुद मारिस मुसुवा,
कोठी के धान हा सिरागे ?
लबरा के रददा ला देखत,
सौ खीली पान हा सिरागे।
बैरी सन गंगाजल बदबे ?
कहि दे मितान हा सिरागे।
जुग आ गे करखाना वाला
भइगे, किसान हा सिरागे।
लेखक श्री जीवन यदु जी के काव्य संग्रह "धान के कटोरा" से उद्घृत है।
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